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कुछ तो मैं कह बैठा हूँ, अभी बहुत कुछ बाकी है,

कागज-कलम हैं मीत मेरे, शब्द ही दिल के साकी हैं !

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"मेरी अभिव्यक्तियों में सूक्ष्म बिंदु से अन्तरिक्ष की अनन्त गहराईयों तक का सार छुपा है इनमें एक बेबस का अनकहा, अनचाहा प्यार छुपा है " -डा0 अनिल चडडा All the content of this blog is Copyright of Dr.Anil Chadah and any copying, reproduction,publishing etc. without the specific permission of Dr.Anil Chadah would be deemed to be violation of Copyright Act.

Saturday, November 17, 2007

अपनी राह चलो!

लोग
तुम्हे क्या समझते हैं
वो
इतना महत्वपूर्ण नही
जितना महत्वपूर्ण ये है
कि
तुम खुद को
क्या समझते हो
नहीं तो
तुम अपना
अस्तित्व भी
खो दोगे
और जो तुम हो
वो भी
नहीं रहोगे
जो तुम
बनना चाहते हो
बन नहीं पाओगे
जो तुम
कहना चाहते हो
कह नहीं पाओगे
करना चाहते हो
कर नहीं पाओगे
इसलिये
अपनी मंजिल पाने को
अपनी राह
चलते रहो
रस्ते खुद-ब-खुद
तुम्हारे साथ चलेंगें
लोग खुद-ब-खुद
तुम्हारी बात सुनेंगें
और
तुम्हारी बात करेंगें
और फिर स्वयँ ही
तुम्हारे पीछे चलेंगें!

आज का इन्सान!

आज का इंसान
बड़ा ही विचित्र है
यूँ तो
किसी का दुश्मन नहीं
पर न ही
किसी का मित्र है
उसके मन में तो
बस
एक ही चित्र है
कैसे
अपने सामने वाले को
अपने से
छोटा साबित करूँ
कैसे उसको हराऊँ
यदि ऐसा हो तो
शायद मैं उसका
स्थान पा जाऊँ
पर
क्या ये आवश्यक है
कि खुद को
बड़ा साबित करने को
दूसरे को छोटा कहें
खुद को
धनवान करने के लिये
दूसरे को निर्धन करें
खुद की बुराई ढाँपने को
दूसरे की अच्छाई को
बुरा कहें
वो
यह भूल जाता है कि
समाज में
छोटे-बड़े
अच्छे-बुरे का मापदंड
केवल उसे ही नहीं
तय करना है
इससे वो
अपनी हीनभावना ही
जगजाहिर करता है
अच्छा हो कि
खुद को
दूसरे से
ऊँचा साबित करने को
अच्छा बनने को
वो अपने रास्ते
खुद बनाये
न कि
दूसरे के रास्ते में
काँटें बिछाये
और अपनी मंजिल पर
खुद पहँच जाये
तब
उसकी ऊँचाई
उसकी अच्छाई
सब को
खुद ही दिखाई देगी
तब उसे
खुद को
दुनिया पर साबित करने की
आवश्यकता नहीं होगी
दुनिया खुद ही
उसके पीछे होगी !

Friday, November 16, 2007

प्रवृति!

यह
कल शाम ही की बात है
जब
शमशान के पास से
गुजरते हुए
एक बार फिर
आकाश को
तपते हुए देखा मैंने!
कुछ लोग
हाथ बाँधे
मौन खड़े थे
शायद
ठिठुरते मौसम में
बुझते दिए की
अंतिम लौ से भी
तपिश लेने की
कोशिश में!
और कुछ
(जो शायद अपने थे)
लाल आँखें लिये
दूर बैठे थे
झुलस रहे थे वो
ठंडी हो रही
आग से भी!
और
कोने का बूढ़ा बरगद
निर्विकार सा खड़ा था
सदियों से
बार-बार
दोहराई जा रही
इन्सान की
दोगली प्रवृति का
मूक दर्शक!

Thursday, November 15, 2007

कमी!

कोई ग़र
जमाने से
झूठ बोले
तो
बात समझ में आती है
कोई ग़र
खुद से
झूठ बोले
तो
बात समझ नहीं आती है
क्या
खुद को खुद से
छुपाना कभी संभव है?
यह असंभव ही नहीं
बल्कि नामुमकिन है
फिर जाने क्यों
लोग
ऐसा करते हैं
और
खुद को
मुगालते में
रखते हैं
जब कि
वो यह नहीं जानते हैं
कि
जिस बात को
वो स्वयँ से
छुपा रहे हैं
शायद
जमाने ने
उसे भांप लिया हो
और
उसकी इस कमजोरी का
फायदा भी
उठा लिया हो
इसलिये ये
निहायत ज़रुरी है
कि
अपनी कमी
न केवल
अपने से न छुपाओ
बल्कि
जमाने से भी न छुपाओ
शायद कोई तुम्हे
सही रास्ता दिखा जाये
और तुम
अपनी कमी पर
विजय पा जाओ!

आगे ही बढ़ना है !

अस्त-व्यस्त से ख्यालों को
कैसे व्यवस्थित करूँ
समझ नहीं पाऊँ
हर तरफ मची है
आपा-धापी
चहूँ और व्याप्त है
अनचाहा शोर
कोई किसी को
लूटने में व्यस्त है
कोई बना है
शातिर चोर
क्या समाज की
यही तस्वीर
थी हमने देखी
समझ नहीं पाऊँ
फिर भी
सोचता हूँ
इस अफरा-तफरी में
कुछ तो कर जाऊँ
कुछ तो कह जाऊँ
जिससे
कोई तो सोचे
सही क्या है
और ग़ल्त क्या है
इस सब भाग-दौड़ का
मतलब क्या है
हम क्यों यूँ ही
इक-दूसरे की जड़ें
काटने में लगे हुए हैं
यदि यूँ ही
चलता रहा
तो
कल हम
कहाँ पहुँचेंगें
क्या सोचा है
किसी ने
दो कदम आगे
और
चार कदम पीछे
जहाँ से चले थे
कल वहीं पर
खुद को
खड़े पायेंगें
तो फिर से
सोच लो
क्या पाना है
तुम्हारी क्या
चाहना है
अगर आगे बढ़ना है
तो
दूसरे को भी
आगे बढ़ाना है
इसी को कह पायेंगें
इसी से कर पायेंगें
हम प्रगति
आगे ही बढ़ाना है!
और
आगे ही बढ़ना है!

Wednesday, November 14, 2007

"मन हरदम यही कहता है "

मन हरदम यही कहता है, कुछ ऐसा हो, कुछ वैसा हो,
लेकिन फिर सोचने लगता है, जाने जीवन में कैसा हो ।

जो होता है, सो होता है, काहे तू चैन को खोता है,
हर छोटी-छोटी बात पे पगले, काहे बैठ के रोता है ।

दो पग चल कर के देख जरा, रस्ते खुद ही आ जायेंगें,
चाहे पहाड़, चाहे नदिया, खुद ही पीछे हट जायेंगें ।

होता गुनाह जी छोड़ना है, इसमें संशय की बात नहीं,
जो सुबह में कभी न ढलती हो, ऐसी कोई भी रात नहीं ।

है कौन किसी का दुनिया में,सब अपने पथ के राही हैं,
यूँ व्यर्थ सोच में पड़ना है, तू अपनी नाँव का माँझी है ।

चंदा तारे न तोड़ सके, तो खुद को छोटा कहना मत,
जो कुछ भी तेरे बस में हो, उससे तू पीछे रहना मत ।

कोई आंधी, तूफां कोई , बस सीना तान के चलना है,
न डरना कभी भी मुशिकल से, बस एक ही बार तो मरना है ।

खुद को दीए की लौ बना, खुद जल के रौशन कर जग को,
कुछ ऐसा करके जग से जा, हरदम तू याद रहे जग को ।

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