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"मेरी अभिव्यक्तियों में
सूक्ष्म बिंदु से
अन्तरिक्ष की
अनन्त गहराईयों तक का
सार छुपा है
इनमें
एक बेबस का
अनकहा, अनचाहा
प्यार छुपा है "
-डा0 अनिल चडडा
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अपनी ही चुभन
कुत्तों की भाँति
दूसरों की
हडिडयाँ चूसते-चूसते
जब
शर्म सी आने लगी
तो
पसलियों में सिर छुपा
अपनी ही हडिडयाँ
चूस-चूस कर
अपनी पिपासा
शांत करने में लग गया
पर
ये दधिची की
हडिडयाँ तो नहीं थीं
जिन्होने
पर-उपकार हेतु
बलिदान दिया था
ये तो
दूसरों की हडिडयों के
चूरमे से बनी थीं
सो
कड़कड़ा गईं
कब तक साथ देता
उनका बनावटीपन
वो दिखाबटीपन
सो पैनी हो
मुझे ही चुभने लगीं
अवश हो
मुझे
यह चुभन
सहनी ही है
आखिर
ये बनावट
ये दिखावट
ये पैनापन
मेरा ही तो दिया हुआ है
अत:
मुझे ही तो सहना है!
मुझे ही सहना है!!
डा0अनिल चड्डा
सज़ा
अपनी सज़ा तो
मैंने
उसी दिन
निश्चित कर ली थी
जब
उनकी चिकनी-चुपड़ी बातों को
दे बैठा था
भरोसे की संज्ञा!
मैं कवि क्यों बना?
सच पूछो तो
मैं कवि ही क्यों बना
जब मैं
चहुँ और व्याप्त भ्रष्टाचार से
लड़ नहीं सका
तो मैं
कायर बन गया
और मन की व्यथा
पन्नों पर उँडेलने लगा
तुमने भी तो मुझे
एक दिन
कायर की संज्ञा दी थी
जब मैंने
तंत्र के भ्रष्टाचार से
आँखें चुरा लीं थीं
हाँ, मैं कायर ही तो हूँ
इसीलिए तो कवि बन गया
मेरे लिये
कल्पना की उड़ान
सबसे सहज़ है
कल्पना में मैं
सारे भ्रष्ट तंत्र से
लड़ सकता हूँ
मेरी रचनाएँ
मेरी लड़ाई का
प्रतीक ही तो हैं
जब अंतस में
मैं
स्वयँ को हारा हुआ पाता हूँ
तो
विद्रोह का
एक और गीत रच जाता हूँ
तुमने
जो वीरता दिखाई
वह क्या काम आई?
मेरी कायरता
कुछ तो काम आती है
मन में
एक कसक तो जगाती है
आने वाली पीढ़ी को भी
शायद उकसाती है
तुम्हारी वीरता
आधुनिक युग में
मूर्खता कहलाई!
मेरी कायरता
कुछ तो रंग लाई!!
दोस्त
दोस्त रोज़ रोज़ तो बना करते नहीं
भरोसा हर किसी पे किया करते नहीं
निभाई न जाये दोस्ती
तो दोस्ती किया करते नहीं
दोस्ती में शक किया करते नहीं
दोस्ती में शर्त रखा करते नहीं
करनी हो यूँ ही दोस्ती
तो कदम आगे किया करते नहीं
दोस्ती है नाम इक विश्वास का
मिल न पाये, एक ऐसी आस का
बिन कहे मिल जाये जो यूँ ही कभी
गुरेज़ उस दोस्ती से किया करते नहीं
एहसास
दोस्त खोने के बाद उसे खोने का एहसास हुआ
अंधेरा छाने पर, दिन के उजाले का भास हुआ
यूँ तो मिल जायेंगें हमें भी तुम्हे भी और भी कई
अपना तो वही हुआ जो दिल के सबसे पास हुआ
दे देता है रौशनी चाँद भी सबको थोड़ी बहुत
सूरज का निकलना ही दुनिया में सबसे खास हुआ
धोखों की दुनिया में, खाते हैं धोखे सभी
क्यों मेरी एक गल्ती से उन्हे धोखे का एहसास हुआ
हम तो ऐसे ही दोस्ती निभाते ग़र वो साथ चलते
और भी अच्छी निभायें गें जो उनको विश्वास हुआ
रिश्ते
रिश्तों की कोई बात करे क्या,
रिश्ते सारे खुदगर्जी,
साथ चले बस उतना कोई,
जितनी जिसकी हो मर्जी,
कौन है अपना, कौन पराया,
कैसे कोई यह पहचाने,
हम तो दिल की बात हैं करते,
अपना वोह जिसको दिल माने,
दिल से दिल की बात हो सच्ची,
क्यों अपनाएँ रस्ते फर्जी?
तुम यह चाहो साथ निभाऊँ,
ले कर अपनी बातें अच्छी,
किसके पास मगर पर जाऊँ,
ले कर सारी कमियाँ अपनी,
साथ निभाये या न निभाये,
सबकी अपनी अपनी मर्जी!
शर्तों की तुम बात न करना,
ऐसे क्या रिश्ते टिकते हैं,
रिश्तों की है नींव समर्पण,
बाकी सब रिश्ते बिकते हैं,
चलना हो ग़र साथ है मेरे,
छोड़ो अपनी यह खुदगर्जी!