रिश्तों की कोई बात करे क्या,
रिश्ते सारे खुदगर्जी,
साथ चले बस उतना कोई,
जितनी जिसकी हो मर्जी,
कौन है अपना, कौन पराया,
कैसे कोई यह पहचाने,
हम तो दिल की बात हैं करते,
अपना वोह जिसको दिल माने,
दिल से दिल की बात हो सच्ची,
क्यों अपनाएँ रस्ते फर्जी?
तुम यह चाहो साथ निभाऊँ,
ले कर अपनी बातें अच्छी,
किसके पास मगर पर जाऊँ,
ले कर सारी कमियाँ अपनी,
साथ निभाये या न निभाये,
सबकी अपनी अपनी मर्जी!
शर्तों की तुम बात न करना,
ऐसे क्या रिश्ते टिकते हैं,
रिश्तों की है नींव समर्पण,
बाकी सब रिश्ते बिकते हैं,
चलना हो ग़र साथ है मेरे,
छोड़ो अपनी यह खुदगर्जी!
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