अंधों के युग में, अंधों सा मैं जी रहा हूँ !
आँसुओं को मौन हो, घूँट-घूँट पी रहा हूँ !!
चल तो पड़ा हाथ में,धर्म की किताब ले,
भूखों की भूख ले, प्यासों की प्यास ले,
आँख से दिखे जिसे, कान से सुने जिसे,
मिलेगा कोई राह में, मन में विश्वास ले,
लुटा-पिटा खड़ा हुआ, तार-तार हो रहे,
धर्म की किताब के, पन्ने ही सी रहा हूँ !
गाँव ही भटक रहा, गाँव की तलाश में,
छाँव मगन हो रही, पेड़ के विनाश में,
दाँव पर लगी बची अस्मिता जो पास है,
पाँव आज हो रहे, दूसरों के दास हैं,
आज अपने बाग के, फूलों का जहर मैं,
ओट में छुपा हुआ, चुपचाप पी रहा हूँ
1 Comments:
आपकी वेबसाइट पर रजिस्टर करने की बहुत कोशिश की परन्तु सफलता नहीं मिली
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