मीरा ने तो
किया था
एक बार विषपान
मुझे
बार-बार करना है
गुज़री थी
एक बार
अग्निपरीक्षा से सीता
मुझे बार-बार जलना है
जितना विष
पिलाओगे तुम मुझे
होगा नुकीला
उतना ही
मेरा दंश
पिलाओगे आग
जितनी मुझे
उगलेगी कलम
उतनी ही बन दबंग
चाहो तो
कर डालो टुकड़े
मेरे ह्र्दय के तारों के
या लटका दो सरेआम मुझे
किसी चौराहे पर
फिर भी मैं लिख ही दूँगा
कटे-फटे
कागज़ के टुकड़ों पर
या
गंदी बस्ती की दीवारों पर
तुम मुझे
जलाते हो
ज़हर देते हो
खोल न दूँ कहीं मैं
भेद तुम्हारा
बता न दूँ विशव को
कि
जीने के लिए
हर क्षण मरते हो
मारते हो
और
मर-मर कर जीते हो
मरता तो
मैं भी बार-बार हूँ
मरना तो निश्चित है
दोनों का
पर मैं मरता हूँ
किसी के लिए
फिर भी मुझे जीना है
पर तुम्हारा जीना है
क्षण-भंगुर
और
मेरा जीना
जीना है
- डा0अनिल चड्डा
0 Comments:
Post a Comment
<< Home