"मेरी अभिव्यक्तियों में
सूक्ष्म बिंदु से
अन्तरिक्ष की
अनन्त गहराईयों तक का
सार छुपा है
इनमें
एक बेबस का
अनकहा, अनचाहा
प्यार छुपा है "
-डा0 अनिल चडडा
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बदला
ऐ दोस्त
तुम
मेरी चिता जलाने आए हो
तो क्या
मेरे एहसानात का
बदला चुकाने आए हो
यदि ऐसा है तो
जीवन भर
क्या रोका था मैंने?
ऐसा करने को
तुम तो
मुझे तब भी
जलाते ही थे
आज भी
जलाओगे ही
अंतर केवल इतना है
तब मैं
मन ही मन जलता था
आज मुझे
साक्षात जलना है
मैं तो
जल कर भी
तुम्हे अपना न सका
तुमने मुझे जला कर भी
सारे एहसान चुका दिए !
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