anilchadah.blogspot.com
"मेरी अभिव्यक्तियों में
सूक्ष्म बिंदु से
अन्तरिक्ष की
अनन्त गहराईयों तक का
सार छुपा है
इनमें
एक बेबस का
अनकहा, अनचाहा
प्यार छुपा है "
-डा0 अनिल चडडा
All the content of this blog is Copyright of Dr.Anil Chadah and any copying, reproduction,publishing etc. without
the specific permission of Dr.Anil Chadah would be deemed to be violation of Copyright Act.
मेरी-तुम्हारी व्यथा!
कल
जब कोई
मेरी कविता पढ़ेगा
तो शायद
हँसेगा !
अपनी अन्तर्व्यथा को
दो शब्दों में
उँडेल कर
कुछ कह देना ही
क्या कविता है?
संसार में क्या
अपनी व्यक्तिगत
व्यथा ही है
किसी और की
व्यथा नहीं है क्या
क्या रात के बाद
दिन नहीं आता है क्या
सूर्य
अंधेरा नहीं
निगल जाता क्या
जैसे
दिन और रात
अंधेरा और रौशनी
एक दूसरे से
जुड़ कर
पर्याय बन चुके हैं
वैसे ही
मेरी व्यथा
तुम्हारी व्यथा से
कहीं न कहीं जुड़ कर
उसकी पर्याय बन चुकी है
केवल समय का
अन्तराल ही
इन्हे जुड़ने नहीं देता
जिस दिन
मेरी व्यथा
तुम्हारी व्यथा से
जुड़ जायेगी
और
पर्याय बन पायेगी
उस दिन
तुम स्वत: ही
इसे
कविता मानोगे
चाहे
ऐसा हो या न हो!
मेरा सम्बल !
मेरे
अकेलेपन ने
यदि
मुझे डसा है
तो
मेरा सम्बल भी तो
बना है
मेरे
अंधकारमय जीवन का
ज्योतिर्पुंज बना है
वही
जो मुझे
सूर्य का प्रतीक बता
शनै-शनै
मेरे
प्रकाश को
लील रहे थे
मेरे
ज्योतिहीन होते ही
न जाने कहाँ
अनंत गहराईयों में
विलीन हो गये
अब तो कहीं
आशा के सितारे भी
दिखाई नहीं देते हैं
और मैं
भटक रहा हूँ
अंतरिक्ष की
सूनी गहराईयों में
बस अकेला ही
अब
मेरा ये
अकेलापन ही तो
मेरा सम्बल है !
आधे-अधूरे रिश्ते!
आधे-अधूरे रिश्ते
जिये नहीं जाते
जल्दी ही हैं मर जाते
इसलिये
ऐसे रिश्तों को
जीने से क्या फायदा
कोई भी रिश्ता
तभी है निभता
जब उसे निभाने को
कोई हो मरता
किसी को भी
केवल
अच्छाईयों के साथ
तो
स्वीकार नहीं किया जा सकता
उसकी
कमियों को भी तो
साथ में लेना है पड़ता
क्योंकि
इक-दूसरे की
कमियों को
इक-दूसरे की
बुराईयों को
एक साथ
निभा पाना ही तो
रिश्ते की परिभाषा है
साथ रहने की
अभिलाषा है
और
इक-दूसरे को
समझने की
मूक भाषा है!