आधे-अधूरे रिश्ते!
आधे-अधूरे रिश्ते
जिये नहीं जाते
जल्दी ही हैं मर जाते
इसलिये
ऐसे रिश्तों को
जीने से क्या फायदा
कोई भी रिश्ता
तभी है निभता
जब उसे निभाने को
कोई हो मरता
किसी को भी
केवल
अच्छाईयों के साथ
तो
स्वीकार नहीं किया जा सकता
उसकी
कमियों को भी तो
साथ में लेना है पड़ता
क्योंकि
इक-दूसरे की
कमियों को
इक-दूसरे की
बुराईयों को
एक साथ
निभा पाना ही तो
रिश्ते की परिभाषा है
साथ रहने की
अभिलाषा है
और
इक-दूसरे को
समझने की
मूक भाषा है!
1 Comments:
बहुत खूब...अनिल भाई.
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