ये ॠतु वसंत है!
धरा है आज खिल रही,
ब्यार भी मचल रही,
ये ॠतु वसंत है!
आज फिर वसंत है!!
डाली-डाली प्यार में,
गुफ्तगू है कर रही,
अधखिली कली भी,
खेल भँवरों से है कर रही,
काँटों से गले क्यों आज,
हर कली है मिल रही,
ये ॠतु वसंत है!
आज फिर वसंत है !!
किरण-किरण महक उठी,
बुलबुलें चहक उठीं,
बहार के ख़ुमार से,
जवानियाँ बहक उठीं,
संयम से जो बनाई थी,
वो नींव आज हिल रही,
ये ॠतु वसंत है!
आज फिर वसंत है!!
सब का मन विभोर है,
चारों और शोर है,
पर मेरा है मन बुझा,
न आया चितचोर है,
मुझको जो हँसा सके,
कमी है उसकी खल रही,
ये ॠतु वसंत है!
आज फिर वसंत है!!
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1 Comments:
basant ka swagat bahut khubsurat
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