गज़ल!
सरेआम दोस्ती करो, सरेआम दुश्मनी,
जो कुछ नहीं है मन में तो क्यों नज़र झुकी ।
हर वार पे ज़रूरी तो नहीं है वार कर,
कभी तो वक्त आयेगा वो चूकेगा कहीं ।
तू बार-बार हार के ना हारना ये मन,
कोशिशें करे जा , रंग लायेंगीं कभी ।
पहचान अपने मन को, मन ही तो साथी है,
है स्वार्थी ये दुनिया, तेरा कोई नहीं ।
हर रास्ते को दुनिया तो बतायेगी ग़ल्त,
ये तेरा फैसला है, तू सही है या नहीं ।
1 Comments:
बहुत दिनों बाद आपकी गज़ल दिखाई दी... सच कहा आपने हर फैसला हमारा अपना होता है... सही या गलत.... बस चलते जाना है अपनी मज़िल की ओर... थकना नहीं है.
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