ये कैसा संसार!
दो अलग-अलग
राहों पर
चलते राही
मिल कर
एक हो जाते हैं
और बन जाते हैं
एक राह के राही
बिना कोई पूर्व रिश्ते के
जब दो इंसा
एक बंधन में
बंध जाते हैं
तो कोई तो आधार
होगा ही
कहीं तो
प्यार होगा ही
पर
दूसरी और
एक राह पर
चलते राही
अलग-अलग राहों पर
चल निकलते हैं
और
जन्म ले साथ-साथ
बचपन-जवानी
काटे साथ-साथ
कभी-कभी
बन जाते हैं
इक-दूसरे के
खून के प्यासे
इसका कोई आधार है क्या?
कभी सोचा है क्या?
आधार तो
दोनों स्थतियों का है
एक का आधार
है प्यार
इक-दूसरे की
कमियों को
करना स्वीकार
और
जीवन तक
कर देना न्यौछावर
दूसरे का आधार
है दुराचार
अनाचार
और
ऐसा व्यवहार
जो दर्शाता हो
कुत्सित विचार
या फिर
जब रिश्तों का
लालच हो आधार
इंसा वही
रिश्ता वही
फिर भी
अलग-अलग
जब हो व्यवहार
तो
फिर सोचने को
मजबूर होना ही पड़ता है
कि
ये कैसा संसार !
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