कमी!
कोई ग़र
जमाने से
झूठ बोले
तो
बात समझ में आती है
कोई ग़र
खुद से
झूठ बोले
तो
बात समझ नहीं आती है
क्या
खुद को खुद से
छुपाना कभी संभव है?
यह असंभव ही नहीं
बल्कि नामुमकिन है
फिर जाने क्यों
लोग
ऐसा करते हैं
और
खुद को
मुगालते में
रखते हैं
जब कि
वो यह नहीं जानते हैं
कि
जिस बात को
वो स्वयँ से
छुपा रहे हैं
शायद
जमाने ने
उसे भांप लिया हो
और
उसकी इस कमजोरी का
फायदा भी
उठा लिया हो
इसलिये ये
निहायत ज़रुरी है
कि
अपनी कमी
न केवल
अपने से न छुपाओ
बल्कि
जमाने से भी न छुपाओ
शायद कोई तुम्हे
सही रास्ता दिखा जाये
और तुम
अपनी कमी पर
विजय पा जाओ!
2 Comments:
बहुत बढिया व सच्ची बात कही है आप ने कविता में-
अपनी कमी
न केवल
अपने से न छुपाओ
बल्कि
जमाने से भी न छुपाओ
शायद कोई तुम्हे
सही रास्ता दिखा जाये
और तुम
अपनी कमी पर
विजय पा जाओ!
हमारे विचोरों को सत्य के धरातल पर ले जाती एक अति सुंदर कविता.
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