दगाबाज!
वो चले तो थे
मेरी अंगुली पकड़ कर
बीच राह में
छोड़ गये पर
राह अपनी मिलने पर
दो राहें मिलती हों जहाँ
दो साथी जुड़ें वहाँ
राहें ग़र हों जायें जुदा
तो ये तो जरूरी नहीं
कि साथ चलने वाले भी
हो जायें जुदा
किस्मत ग़र मज़बूर करे
तो वो बात अलग है
खुद-ब-खुद ग़र छोड़े कोई
तो उसका मतलब अलग है
राह पाने की कोशिश में
किसी की
अंगुली पकड़ कर
चल तो पड़े कोई
राह मिलते ही
ग़र छोड़ जाये कोई
तो ऐसे को कोई
क्या नाम दे
वो तो
दगाबाज ही कहाये
फिर
ऐसे को कोई
अपना क्यों बनाये
कहो
अपना क्यों बनाये
1 Comments:
लेकिन सर दिक्कत तो ये है कि अंगुली पकड़ कर साथ चलते समय कंहा मालुम रहता है कि कौन साथ छोडेगा और कौन साथ देगा.
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