फर्ज!
title="चिट्ठाजगत अधिक्रत कड़ी">
दो कदम चल कर
राह के पत्थरों से
ग़र ठोकर खाई
तो
हार मान बैठे कोई
जिंदगी से
तो बताओ
इसे क्या नाम दें ?
दो कदम चल कर
दो पत्थरों को
ठोकर मार कर
खुद को
बहादुर मान बैठ कोई
तो कहो
इसे क्या नाम दें?
जिंदगी का नाम
तो चलते जाना है
न ठोकर खा कर
घबराना है
और
न थोड़ी सी कामयाबी से
सिर उठाना है
इंसा तो वही है
जिसे हर हाल में
इन्सानियत का
फर्ज निभाना है!
4 Comments:
इंसा तो वही है
जिसे हर हाल में
इन्सानियत का
फर्ज निभाना है!
बहुत सुन्दर.... सुन्दर अभिव्यक्ति ... !
क्या बात है
वाह! वाह!! क्या खूब कही. अच्छा लगा.
प्रोत्साहन के लिये सभी को धन्यवाद !
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