कोई कितना गिरे!
किसी के प्यार की खातिर
कोई अपने आप को
कितना गिराये
ये वोही बताए
हम तो रोता हुआ दिल
उनके पास ले कर गये थे
कि शायद
वो चुप कराएँ
कोई इसको क्या समझे
जब वो हमें और रुलायें
ये तो दुनिया का दस्तूर है अब
सब को अपने दिल की
आवाज ही सुनाई देती है
दूसरों का रोना तो
बनावट दिखाई देती है
तो अपनी बात कहो
कोई किसी को कैसे समझाए
जब अपने पाँव के छाले
हमें खुद ही सहलाने हैं
अपने-अपने रास्ते
हमें खुद ही बनाने हैं
तो क्यों किसी के साथ की
कोई चाहत बनाये
और रोते हुए दिल को
बेकार ही और रुलाए
और रुलाता चला जाये
रुलाता चला जाये
3 Comments:
कमाल है.
अतुल
बढ़िया है.
बहुत बढिया रचना है।बधाई\
ये तो दुनिया का दस्तूर है अब
सब को अपने दिल की
आवाज ही सुनाई देती है
दूसरों का रोना तो
बनावट दिखाई देती है
तो अपनी बात कहो
कोई किसी को कैसे समझाए
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