आओ एक दीप जलाएँ!
दीवाली तो
हर वर्ष ही आती है
जब बुराई पर
जीत की
खुशियाँ मनाई जाती हैं
यह पर्व तो
युगों से मनाया जा रहा है
पर क्या
अभी तक कोई
बुराई पर
विजय पा सका है?
बुराई तो
हर पल, हर क्षण
अपना सिर उठाती है
और अच्छाई को
निगल जाती है
बुराई तो
हर रोज दीवाली मनाती है
हमारी दीवाली तो
वर्ष में
बस एक बार ही आती है
तब भी तो
बुराई पुरजोर
अपना सिर उठाती है
अच्छाई की आवाज तो
पटाखों के शोर में ही
दबा जाती है
और किसी को
कहाँ सुनाई देती है
उन बेबस लाचारों की आवाज
जिन की दीवाली
कभी नहीं आती है
उनके अरमानों की होली तो
दीयों की लौ ही
जला जाती है
इसलिये
मुझे ये बात
हज्म नहीं हो पाती है
कि आज की दीवाली
बुराई पर
अच्छाई की जीत है
या
बुराई आज भी
अच्छाई को
मुँह चिढ़ा रही है
मेरी दीवाली तो
तब मनेगी
जब
भूखे-बेबस-लाचारों के
मन की चीत्कार
नहीं दबा पायेगी
कोई ऐसी दीवाली
मेरी दीवाली तो
तब मनेगी
जब हट जायेगी
भ्रष्टाचार एवँ बर्बरता
की बीमारी
इसलिये आओ
हम अपने संकल्प का
एक-एक दीप जलाएँ
दीवाली हो
चाहे न हो
बुराई को
जड़ से मिटाएँ
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