आगे ही बढ़ना है !
अस्त-व्यस्त से ख्यालों को
कैसे व्यवस्थित करूँ
समझ नहीं पाऊँ
हर तरफ मची है
आपा-धापी
चहूँ और व्याप्त है
अनचाहा शोर
कोई किसी को
लूटने में व्यस्त है
कोई बना है
शातिर चोर
क्या समाज की
यही तस्वीर
थी हमने देखी
समझ नहीं पाऊँ
फिर भी
सोचता हूँ
इस अफरा-तफरी में
कुछ तो कर जाऊँ
कुछ तो कह जाऊँ
जिससे
कोई तो सोचे
सही क्या है
और ग़ल्त क्या है
इस सब भाग-दौड़ का
मतलब क्या है
हम क्यों यूँ ही
इक-दूसरे की जड़ें
काटने में लगे हुए हैं
यदि यूँ ही
चलता रहा
तो
कल हम
कहाँ पहुँचेंगें
क्या सोचा है
किसी ने
दो कदम आगे
और
चार कदम पीछे
जहाँ से चले थे
कल वहीं पर
खुद को
खड़े पायेंगें
तो फिर से
सोच लो
क्या पाना है
तुम्हारी क्या
चाहना है
अगर आगे बढ़ना है
तो
दूसरे को भी
आगे बढ़ाना है
इसी को कह पायेंगें
इसी से कर पायेंगें
हम प्रगति
आगे ही बढ़ाना है!
और
आगे ही बढ़ना है!
1 Comments:
सही कहा सर आपने यही एक मात्र तरीका है प्रगति का सबको साथ-साथ लेकर बढ़ना. इतनी भावपूर्ण कविता के लिए आपको बधाई. आप एक दिन मे सिर्फ़ एक दो कवितायें क्यों लिखतें है . मन करता है बस पढता जाऊं. आपकी छपी हुई किताब कंहा मिलेगी ? अगर भेज सके तो कृपा होगी.
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