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कुछ तो मैं कह बैठा हूँ, अभी बहुत कुछ बाकी है,

कागज-कलम हैं मीत मेरे, शब्द ही दिल के साकी हैं !

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"मेरी अभिव्यक्तियों में सूक्ष्म बिंदु से अन्तरिक्ष की अनन्त गहराईयों तक का सार छुपा है इनमें एक बेबस का अनकहा, अनचाहा प्यार छुपा है " -डा0 अनिल चडडा All the content of this blog is Copyright of Dr.Anil Chadah and any copying, reproduction,publishing etc. without the specific permission of Dr.Anil Chadah would be deemed to be violation of Copyright Act.

Wednesday, January 30, 2008

गज़ल!

ख़ुद को इतना न गिराओ कि कोई उठा न सके,
आग इतनी न लगाओ कि कोई बुझा न सके ।

रफ्ता-रफ्ता करके तो रिश्ता तरश्ता है,
चोट इतनी न लगाओ कि फिर से बना न सकें ।

दर्द तो होती है सुई की नोक से भी,
ज़ख्म ऐसे न बनाओ कि कोई भरा न सके ।

किसी को दोष बिना वजह तुम देते क्यों हो,
बददुआ को तो कोई भी दुआ बना न सके ।

अब तो आदत सी पड़ चुकी है चोट खाने की,
गहरी चोट भी कोई असर दिखा न सके ।

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