गज़ल!
दोस्तों की दोस्ती तो देख चुके,
दुश्मनों से ज़फा निभायेगें ।
अश्कों ने साथ मेरा छोड़ दिया,
अब तो हँस के ही ग़म उठायेंगें ।
ज़ख्म खाने से तो गुरेज़ नहीं,
मरहम ग़र उस पे वो लगायेंगें ।
लाख रौशन करो अँधेरों को,
दिल मेरा फिर भी वो जलायेंगें ।
सब्र होगा तभी हसीनों को,
जब ज़नाजा मेरा उठायेंगें ।
2 Comments:
लाख रौशन करो अँधेरों को,
दिल मेरा फिर भी वो जलायेंगें ।
उम्दा शेर है मालिक. मस्त कर गया.
धन्यवाद मीत जी । किसी को मेरी रचना पसंद आये तो प्रतीत होता सारे जहाँ की खुशियाँ मिल गईं।
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