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कुछ तो मैं कह बैठा हूँ, अभी बहुत कुछ बाकी है,

कागज-कलम हैं मीत मेरे, शब्द ही दिल के साकी हैं !

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"मेरी अभिव्यक्तियों में सूक्ष्म बिंदु से अन्तरिक्ष की अनन्त गहराईयों तक का सार छुपा है इनमें एक बेबस का अनकहा, अनचाहा प्यार छुपा है " -डा0 अनिल चडडा All the content of this blog is Copyright of Dr.Anil Chadah and any copying, reproduction,publishing etc. without the specific permission of Dr.Anil Chadah would be deemed to be violation of Copyright Act.

Friday, November 09, 2007

आओ एक दीप जलाएँ!

दीवाली तो
हर वर्ष ही आती है
जब बुराई पर
जीत की
खुशियाँ मनाई जाती हैं
यह पर्व तो
युगों से मनाया जा रहा है
पर क्या
अभी तक कोई
बुराई पर
विजय पा सका है?
बुराई तो
हर पल, हर क्षण
अपना सिर उठाती है
और अच्छाई को
निगल जाती है
बुराई तो
हर रोज दीवाली मनाती है
हमारी दीवाली तो
वर्ष में
बस एक बार ही आती है
तब भी तो
बुराई पुरजोर
अपना सिर उठाती है
अच्छाई की आवाज तो
पटाखों के शोर में ही
दबा जाती है
और किसी को
कहाँ सुनाई देती है
उन बेबस लाचारों की आवाज
जिन की दीवाली
कभी नहीं आती है
उनके अरमानों की होली तो
दीयों की लौ ही
जला जाती है
इसलिये
मुझे ये बात
हज्म नहीं हो पाती है
कि आज की दीवाली
बुराई पर
अच्छाई की जीत है
या
बुराई आज भी
अच्छाई को
मुँह चिढ़ा रही है
मेरी दीवाली तो
तब मनेगी
जब
भूखे-बेबस-लाचारों के
मन की चीत्कार
नहीं दबा पायेगी
कोई ऐसी दीवाली
मेरी दीवाली तो
तब मनेगी
जब हट जायेगी
भ्रष्टाचार एवँ बर्बरता
की बीमारी
इसलिये आओ
हम अपने संकल्प का
एक-एक दीप जलाएँ
दीवाली हो
चाहे न हो
बुराई को
जड़ से मिटाएँ

Thursday, November 08, 2007

झूठा आवरण!

तुमने जो
ओढ़ ली है
खामोशियों की चादर
मैं
चुपचाप सा
ठगा सा
रह गया हूँ
तुम्हारे इस मौन को
कहो क्या समझूँ?
आत्मसमर्पण
या पलायन
जीवन के
सहज व्यापार से?
या अब
तुम्हारे ह्रदय में
कोई तरंग
उठती ही नहीं
या
नहीं होते आलोड़ित
तुम किसी भी विचार से
मान-अभिमान की परिभाषा
अगर तुम समझते
तो
यूं न झूठे आवरण में
जा छुपते
यदि मैंने भी
ओढ़ लिया
अहँ का कवच
तो
मुशिकल हो जायेगा
मेरे लिये ही
उसे भेद पाना
आओ
अपना-अपना आवरण
उतार कर
साथ चलते रहें
शिकायत भी हो तो
करते रहें
और
दो निर्मल नदियों की मानिंद
जीवन सागर में
मिलते रहें!

Wednesday, November 07, 2007

सच्ची तस्वीर!

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी
मैंने ख्वाबों में
जो तस्वीर देखी
वो आँख खुलते ही
धुंधला गई
मुझे समझ नहीं आई
जो अक्स
मेरा अंतर्मन बनाता है
वो आँख खुलते ही
क्यों टूट जाता है
शायद यही अंतर है
सच और झूठ में
अमल और सोच में
कुछ पाने के लिये
कर्म तो करना ही पड़ता है
केवल ख्वाब लेने से ही
काम नहीं चलता है
इसलिये उठ
कर्मठ हो कर
कर्म कर
मेहनत से न डर
मुश्किल से न डर
बस कर्म ही कर
कर्म ही कर

Tuesday, November 06, 2007

दगाबाज!

वो चले तो थे

मेरी अंगुली पकड़ कर

बीच राह में

छोड़ गये पर

राह अपनी मिलने पर

दो राहें मिलती हों जहाँ

दो साथी जुड़ें वहाँ


राहें ग़र हों जायें जुदा

तो ये तो जरूरी नहीं

कि साथ चलने वाले भी

हो जायें जुदा

किस्मत ग़र मज़बूर करे

तो वो बात अलग है

खुद-ब-खुद ग़र छोड़े कोई

तो उसका मतलब अलग है

राह पाने की कोशिश में

किसी की

अंगुली पकड़ कर

चल तो पड़े कोई

राह मिलते ही

ग़र छोड़ जाये कोई


तो ऐसे को कोई

क्या नाम दे

वो तो


दगाबाज ही कहाये

फिर

ऐसे को कोई

अपना क्यों बनाये

कहो

अपना क्यों बनाये

Monday, November 05, 2007

कोई कितना गिरे!

किसी के प्यार की खातिर
कोई अपने आप को
कितना गिराये
ये वोही बताए

हम तो रोता हुआ दिल
उनके पास ले कर गये थे
कि शायद
वो चुप कराएँ
कोई इसको क्या समझे
जब वो हमें और रुलायें

ये तो दुनिया का दस्तूर है अब
सब को अपने दिल की
आवाज ही सुनाई देती है
दूसरों का रोना तो
बनावट दिखाई देती है
तो अपनी बात कहो
कोई किसी को कैसे समझाए

जब अपने पाँव के छाले
हमें खुद ही सहलाने हैं
अपने-अपने रास्ते
हमें खुद ही बनाने हैं
तो क्यों किसी के साथ की
कोई चाहत बनाये
और रोते हुए दिल को
बेकार ही और रुलाए
और रुलाता चला जाये
रुलाता चला जाये

Sunday, November 04, 2007

टूटी हुई जिंदगी!

जितनी बार भी

जोड़ना चाहा

इस टूटी हुई जिंदगी को

जिंदगी की लहर के साथ

कोई एक बार फिर

ठोकर मार कर चल दिया

न जाने क्यों

इस दुनिया के लोग

किसी की खुशी देख कर

खुश नहीं होते

क्यों हरेक की राह में

काँटें हैं बोते

बस यहीं से शुरू होती है

भाग-दौड़

और

इक-दूसरे को हराने के लिए

दाँव-पेचों की

तोड़-मरोड़

क्या सोचा है कभी?

क्या इसे ही जिंदगी कहते हैं!

कभी किसी का चैन

कभी किसी की खुशी

छीनने की

लगी रहे हमेशा उधेड़बुन

जिंदगी तो

नाम है जोड़ने का

किसी के दुखों का

रुख मोड़ने का

यहाँ तो जो भी आयेगा

एक दिन तो फनाँ होगा

पर नाम उसी का यहाँ होगा

जो कभी किसी के लिये मिटा होगा!







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