मेरा अंतस मुझे जान गया !
मैं मुझको पहचान न पाया,
अंतस मेरा मुझे जान गया,
खुद को देना धोखा मुशिकल,
बरबस ही मन ये मान गया ।
पग-पग पर मिल जाये यहाँ पर,
झूठों के अंबार नये,
दुश्मन तो दुश्मन ही ठहरा,
अपने अपनों को मार रहे,
कौन किसी पर करे भरोसा,
सोच के मन परेशान हुआ ।
आग लगी चहुँ ओर स्वार्थ की,
हर शख्स यहाँ हैवान बना,
जीवन में अंधी दौड़ में पड़ के,
इंसा भी शैतान बना,
व्यापार बना है धर्म औ' शिक्षा,
पैसा ही भगवान हुआ,