"हसरत"
हसरतों का जीवन
जीता रहा हूँ मैं
अपना हर पल
हर क्षण
मृगतृष्णा को
अर्पित करता रहा हूँ मैं
जब तक
ये समझ में आया मुझे
हसरतों का
कोई अर्थ ही न रहा
मेरी हर उपलब्धि
हर प्रयास
व्यर्थ ही गया
और मैं
इसी सोच में
पड़ गया
कि इस जीवन में
मैंने क्या पाया
और
जीवन ने
मुझसे क्या पाया
अपनी हसरतों की
लम्बी फेहरिस्त लिये
मैं भटकता ही रहा
पग-पग पर
बार-बार
अटकता ही रहा
अब जब
मैं इन हसरतों के
माया जंजाल से
उबर चुका हूँ
तो
स्वयं को
कुछ भी कर पाने में
असमर्थ पाता हूँ
जो भी
करना था
या करना चाहिये था
उसके
स्वप्न ही ले पाता हूँ
पर अब
अपनी हसरत
पूरी कहाँ कर पाता हूँ