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"मेरी अभिव्यक्तियों में
सूक्ष्म बिंदु से
अन्तरिक्ष की
अनन्त गहराईयों तक का
सार छुपा है
इनमें
एक बेबस का
अनकहा, अनचाहा
प्यार छुपा है "
-डा0 अनिल चडडा
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कैसे करूँ मैं शुक्रिया !
कैसे
शुक्रिया करूँ मैं
उन लोगों का
जिन्हे मैं
न तो
समझ ही पाया
और न ही
झेल पाया
पर
अनजाने ही
उन्होने मुझको
दोस्तों,
दुश्मनों
एवँ
रिश्तेदारों
के रूप में
सही-गल्त में
फर्क करना
है सिखलाया
उन्होने ही तो
मुझे
पग-पग पर
फिर से
ठोकर खाने से
है बचाया
इसलिये
उन लोगों से ज्यादा,
जो हरदम
मेरा
सम्बल बने हैं,
ऐसे ही लोगों का
एहसानमंद
रहूँगा मैं
और
करता रहूँगा
उनका
सौ-सौ बार
शुक्रिया मैं !
शुक्रिया मैं !!
समझ नहीं पाता हूँ !
समझ नहीँ पाता हूँ
किस-किस को
कितनी-कितनी बार
माफ करूँ मैं
या फिर
हर बार ही
हिसाब साफ करूँ मैं
समझ नहीं पाता हूँ
क्या
लोगों की गल्तियाँ
दरनिकार करना
मेरी मज़बूरी है
या फिर
फितरत है मेरी
हो सकता है
गल्ती की
प्रतिक्रिया में
गल्ती करना
सुहाता न हो मुझे
और मैं
अनजाने ही
दूसरों की गल्तियाँ
माफ कर बैठता हूँ
पर
इससे क्या
मैं उसको
बढ़ावा नहीं दे जाता हूँ
और
वो फिर से
एक और गल्ती
कर जाता है
और मैं
फिर से
स्वयँ को
अवश ही पाता हूँ
प्रतिक्रिया करने में
यूँ
ये सब बढ़ता ही जाता है
अब तुम्ही कहो
ऐसे में
मैं क्या करूँ
मूक रह कर
अवशता ही दर्शाऊँ
या फिर
चुपचाप
किनारा ही कर लूँ !
ताकि
बार-बार
ऐसी अवस्था का
सामना न करना पड़े !!