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"मेरी अभिव्यक्तियों में सूक्ष्म बिंदु से अन्तरिक्ष की अनन्त गहराईयों तक का सार छुपा है इनमें एक बेबस का अनकहा, अनचाहा प्यार छुपा है " -डा0 अनिल चडडा All the content of this blog is Copyright of Dr.Anil Chadah and any copying, reproduction,publishing etc. without the specific permission of Dr.Anil Chadah would be deemed to be violation of Copyright Act.

Monday, August 18, 2008

मेरा अंतस मुझे जान गया !

मैं मुझको पहचान न पाया,
अंतस मेरा मुझे जान गया,
खुद को देना धोखा मुशिकल,
बरबस ही मन ये मान गया ।

पग-पग पर मिल जाये यहाँ पर,
झूठों के अंबार नये,
दुश्मन तो दुश्मन ही ठहरा,
अपने अपनों को मार रहे,
कौन किसी पर करे भरोसा,
सोच के मन परेशान हुआ ।

आग लगी चहुँ ओर स्वार्थ की,
हर शख्स यहाँ हैवान बना,
जीवन में अंधी दौड़ में पड़ के,
इंसा भी शैतान बना,
व्यापार बना है धर्म औ' शिक्षा,
पैसा ही भगवान हुआ,

5 Comments:

Blogger राजीव रंजन प्रसाद said...

आग लगी चहुँ ओर स्वार्थ की,
हर शख्स यहाँ हैवान बना,
जीवन में अंधी दौड़ में पड़ के,
इंसा भी शैतान बना,
व्यापार बना है धर्म औ' शिक्षा,
पैसा ही भगवान हुआ

वाह!! बेहतरीन प्रस्तुति


***राजीव रंजन प्रसाद

11:41 PM  
Blogger Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा!!

12:26 AM  
Blogger डॉ० अनिल चड्डा said...

राजीव एवं समीर जी,

कविता पसन्द आने का बहुत-बहुत शुक्रिया !

11:54 AM  
Blogger Asha Joglekar said...

Bahut sunder aaj ke bahar ke halat aur apne antas ki pukar dono ko bahut achcha prakat kiya aapne. abhinandan !

10:25 PM  
Blogger डॉ० अनिल चड्डा said...

protsahan badhane ka bahut bahut shukriya Ashaji. Aap jaise sahitya ke chahane walon ki pratikirya ka intezar rehta hai

10:38 AM  

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