कुछ तुम भूलो, कुछ वो भूलें
गुज़री बातों को याद करो तो क्या मिलना है,
हर रोज ही तो इक बात नई से जी जलना है ।
कितने छाले फोड़ो गे, दिल कितना छोड़ो गे,
खुशियों की सौगात को तुम कितना मोड़ो गे,
जीने को हालात के संग ही तो चलना है ।
कुछ तुम भूलो, कुछ वो भूलें तो बात बनेगी,
ग़र थाम लो उसका हाथ, सुलभ हर राह कटेगी,
वर्ना ठोकर लगने से मुश्किल होगा संभलना ।
3 Comments:
बहुत सुन्दर व सही कविता है।
घुघूती बासूती
कुछ तुम भूलो, कुछ वो भूलें तो बात बनेगी,
ग़र थाम लो उसका हाथ, सुलभ हर राह कटेगी,
वर्ना ठोकर लगने से मुश्किल होगा संभलना ।
bhut bhavuk.jari rhe.
मिराज़ एवं रश्मि जी,
गीत पसन्द आने का आभारी हूँ । ऐसे ही प्रोत्साहन मिलता रहा तो आपकी आशा पर खरा उतरने की कोशिश करता रहूँगा ।
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