अपनी-अपनी खुशी!
तुम्हारी दोगली फितरत का
तो मैं तभी कायल हो गया था
जब तुम वादा करके
अगले ही पल
मुकर गये थे
मैं फिर भी
तुम्हे आज़माता रहा
तुम्हारा हमदम बन
तुम्हारा हर दर्द
सहलाता रहा
सोचता रहा
कभी तो तुम्हारा
ज़मीर जगेगा
कभी तो कोई
तुम्हे भायेगा
जिसे तुम्हारी वफा का
एहसास होगा
पर क्या जानता था
तुम अपनी
फितरत से मजबूर थे
मैं अपनी
आदत से परेशान था
तुम ज़फा करके खुश थे
और मैं
अपनी वफा में खुश
दोनों को
अपनी-अपनी खुशी में
खुश रहना ही अच्छा है!
6 Comments:
तुम ज़फा करके खुश थे
और मैं
अपनी वफा में खुश
दोनों को
अपनी-अपनी खुशी में
खुश रहना ही अच्छा है!
kya baat hai,kushi alag bhi ek jafa,ek wafa,aur kushi saath bhi nice.
उम्मीद पर दुनिया कायम है जी उम्मीद न छोड़िए
उम्मीद पर दुनिया कायम है जी उम्मीद न छोड़िए
महक जी एवं अनिता जी,
रचना पसन्द आने का शुक्रिया ।
अपनी-अपनी खुशी में
खुश रहना ही अच्छा है!
behad khoobsurat sir !!
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