मेरा सम्बल !
मेरे
अकेलेपन ने
यदि
मुझे डसा है
तो
मेरा सम्बल भी तो
बना है
मेरे
अंधकारमय जीवन का
ज्योतिर्पुंज बना है
वही
जो मुझे
सूर्य का प्रतीक बता
शनै-शनै
मेरे
प्रकाश को
लील रहे थे
मेरे
ज्योतिहीन होते ही
न जाने कहाँ
अनंत गहराईयों में
विलीन हो गये
अब तो कहीं
आशा के सितारे भी
दिखाई नहीं देते हैं
और मैं
भटक रहा हूँ
अंतरिक्ष की
सूनी गहराईयों में
बस अकेला ही
अब
मेरा ये
अकेलापन ही तो
मेरा सम्बल है !
2 Comments:
मेरा सम्बल भी तो बना हॆ..सच कहा आपने
विक्रम
शुक्रिया विक्रमजी ।
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