चलता चल तो राह मिलेगी !
कौन हुआ है दर्द का सम्बल,
कौन हुआ है तेरा अपना,
सब सहलायें छाले अपने,
गौण हुई दूजे की पीड़ा ।
रोना है तो खोना है सब,
दर्द तुझी को होना है सब,
ग़म को पी ले मान के अमृत,
ठौर है इसका और कहाँ ।
नहीं राह पर काँटें मिलेंगें,
सोच, अगर हम नहीं चलेंगें,
जीवन में तो हारेंगें ही,
मंजिल भी हमको मिले कहाँ ।
चल उठ फिर खा कर ठोकर,
छोड़ न रस्ता हिम्मत खोकर,
चलता चल तो राह मिलेगी,
सोच में तू बेकार पड़ा ।
3 Comments:
सच ही कहा है किसी ने:
हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती.
बहुत अच्छी कविता और उससे भी अच्छा फलसफा ।
आशाज़ी एवं समीरजी,
कविता की प्रशंसा के लिये बहुत-बहुत शुक्रिया ।
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