सच पूछो तो
मैं कवि ही क्यों बना
जब मैं
चहुँ और व्याप्त भ्रष्टाचार से
लड़ नहीं सका
तो मैं
कायर बन गया
और मन की व्यथा
पन्नों पर उँडेलने लगा
तुमने भी तो मुझे
एक दिन
कायर की संज्ञा दी थी
जब मैंने
तंत्र के भ्रष्टाचार से
आँखें चुरा लीं थीं
हाँ, मैं कायर ही तो हूँ
इसीलिए तो कवि बन गया
मेरे लिये
कल्पना की उड़ान
सबसे सहज़ है
कल्पना में मैं
सारे भ्रष्ट तंत्र से
लड़ सकता हूँ
मेरी रचनाएँ
मेरी लड़ाई का
प्रतीक ही तो हैं
जब अंतस में
मैं
स्वयँ को हारा हुआ पाता हूँ
तो
विद्रोह का
एक और गीत रच जाता हूँ
तुमने
जो वीरता दिखाई
वह क्या काम आई?
मेरी कायरता
कुछ तो काम आती है
मन में
एक कसक तो जगाती है
आने वाली पीढ़ी को भी
शायद उकसाती है
तुम्हारी वीरता
आधुनिक युग में
मूर्खता कहलाई!
मेरी कायरता
कुछ तो रंग लाई!!
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