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"मेरी अभिव्यक्तियों में सूक्ष्म बिंदु से अन्तरिक्ष की अनन्त गहराईयों तक का सार छुपा है इनमें एक बेबस का अनकहा, अनचाहा प्यार छुपा है " -डा0 अनिल चडडा All the content of this blog is Copyright of Dr.Anil Chadah and any copying, reproduction,publishing etc. without the specific permission of Dr.Anil Chadah would be deemed to be violation of Copyright Act.

Friday, May 25, 2007

अपनी ही चुभन


कुत्तों की भाँति
दूसरों की
हडिडयाँ चूसते-चूसते
जब
शर्म सी आने लगी
तो
पसलियों में सिर छुपा
अपनी ही हडिडयाँ
चूस-चूस कर
अपनी पिपासा
शांत करने में लग गया
पर
ये दधिची की
हडिडयाँ तो नहीं थीं
जिन्होने
पर-उपकार हेतु
बलिदान दिया था
ये तो
दूसरों की हडिडयों के
चूरमे से बनी थीं
सो
कड़कड़ा गईं
कब तक साथ देता
उनका बनावटीपन
वो दिखाबटीपन
सो पैनी हो
मुझे ही चुभने लगीं
अवश हो
मुझे
यह चुभन
सहनी ही है
आखिर
ये बनावट
ये दिखावट
ये पैनापन
मेरा ही तो दिया हुआ है
अत:
मुझे ही तो सहना है!
मुझे ही सहना है!!

डा0अनिल चड्डा

3 Comments:

Blogger अभिनव said...

उत्कृष्ट कविता है डा साहब, छू गई।

4:01 AM  
Blogger Udan Tashtari said...

वाह, बहुत अच्छी रचना. बधाई.

5:30 AM  
Blogger डॉ० अनिल चड्डा said...

प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद। कोशिश करता रहूँगा ।

9:44 AM  

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