कोई कैसे बच सकता है !
हर एक कदम जो उठता है,
वो तेरी और ही चलता है,
दूरी नहीं है पल भर की,
इंतजार में जीवन कटता है !
तू याद रहे हर कदम पे है,
न जाने कब निकले ये दम,
दुष्कर्म को लेकिन करते हुए,
नहीं याद तुझे कोई रखता है !
अपने कर्म बस अपने हैं,
नहीं दोष खुदा का कोई है,
क्यों दोष खुदा को देता है,
कर्मों का सिला जब मिलता है !
बस अपने छाले दिखते हैं,
किसी और दर्द की क्या परवाह,
होती तकलीफ तभी तो है,
अपना ज़ख्म जब रिसता है !
तेरे साये में रहता जीवन,
हर रंग में तू ही बसती है,
तू मिलती है सबको लेकिन,
नहीं रूप किसी को दिखता है !
यूं तो जीवन इक आशा है,
और मौत का नाम निराशा है,
पर साथ न दोनों का हो तो,
जीवन कैसे चल सकता है !
जीवन को धोखा देना तो,
सबसे आसाँ काम है पर,
मौत के सच से तू बोल,
कोई कैसे बच सकता है !
1 Comments:
बस अपने छाले दिखते हैं,
किसी और दर्द की क्या परवाह,
होती तकलीफ तभी तो है,
अपना ज़ख्म जब रिसता है !
सच कहा अपना ही दर्द सबसे बड़ा होता है
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