मज़हब है हिन्दुस्तानी !
मज़हबी बात न कर नादान,
वतन की फिक्र कर नादान ।
तिनके-तिनके से बसता है घर,
घर को बरबाद न कर नादान ।
एक ही खुदा के इंसां हैं सभी,
कुछ खुदा की कद्र कर नादान ।
बाद मरने के कितनी चाहिये ज़मीं,
ज्यादा लालच न कर नादान ।
घर हिंन्दुस्तान, मज़हब है हिन्दुस्तानी,
इस बात से तो न मुकर नादान ।
6 Comments:
बहुत खूब लिखा है अनिल साहब आप ने ..बधाई ..
बहुत-बहुत शुक्रिया अनवर जी ।
घर हिंन्दुस्तान, मज़हब है हिन्दुस्तानी,
इस बात से तो न मुकर नादान ।
बहुत सुन्दर लिखा है।
kuchh khuda ki kadra kar nadan, bahut achhi line. vaise poori rachana hi achhi hai, kafi achhi.
kuchh khuda ki kadra kar naadan.... behatrin linen.poori rachna badhiya hai.
शोभाजी एवँ पाराशरजी,
रचना की प्रशंसा के लिये आभारी हूँ । यदि ऐसे ही प्रोत्साहन मिलता रहे साहित्य के चाहने वालों से तो कोशिश जारी रखुँ गा ।
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