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कुछ तो मैं कह बैठा हूँ, अभी बहुत कुछ बाकी है,

कागज-कलम हैं मीत मेरे, शब्द ही दिल के साकी हैं !

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"मेरी अभिव्यक्तियों में सूक्ष्म बिंदु से अन्तरिक्ष की अनन्त गहराईयों तक का सार छुपा है इनमें एक बेबस का अनकहा, अनचाहा प्यार छुपा है " -डा0 अनिल चडडा All the content of this blog is Copyright of Dr.Anil Chadah and any copying, reproduction,publishing etc. without the specific permission of Dr.Anil Chadah would be deemed to be violation of Copyright Act.

Thursday, August 28, 2008

एक नया वज़ूद रचें !

ग़र हम
किसी के नहीं
तो स्वयँ
अपने भी तो नहीं
किसी को
कुछ देने से
हम लेने का
अधिकार भी
स्वयँमेव ही
पा जाते हैं
इसीलिये तो
प्यार से
प्यार का बढ़ना
और
नफरत से
नफरत का बढ़ना
हो जाता है
अतएव
किसी का
न हो पाना
किसी को
प्यार न कर पाना
अपने वज़ूद को ही तो
नकारना है
तभी तो कहता हूँ
कि
ग़र मिटना ही है
तो क्यों न
किसी और के लिये मिटें
क्यों न
किसी और के बनें
और
अपने वज़ूद को
किसी और के
वज़ूद में
समाहित कर
एक नया
वज़ूद रचें !


3 Comments:

Blogger vipinkizindagi said...

achchi post

1:41 PM  
Blogger Udan Tashtari said...

उम्दा!!

6:29 PM  
Blogger Asha Joglekar said...

BAHUT SUNDER.

8:49 PM  

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