रिश्तों में उल्हास !
हम जो हैं
सो हैं
तुम जो हो
सो हो
फिर रिश्तों में
क्यों खटास हो
कभी तो सोचो
ग़र
नहीं समझ पाते हो
तो अपनी कमी ही
दर्शाते हो
क्योंकि
स्वयँ को
समझ लेना ही तो
बुद्धिमानी नहीं
अपनी कमी को
छुपाना ही तो
चतुराई नहीं
रिश्तों में
बुद्धिमानी और चतुराई
न केवल
अपनी कमियाँ ढ़ाँपने में है
दूसरों की कमियों को भी
ढ़ाँपने एवँ
दरनिकार करने में है
तभी तो
इक-दूजे में विश्वास
बना पायेंगें
और रिश्तों में उल्हास
आ पायेगा
और
हम आ पायेंगें
और पास-पास
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