शीशे सा था वतन मेरा !
स्वार्थ में अंधा हो कर के, भाई भाई से दूर किया ।
निर्मल से दर्पण में था दिखता, चेहरों पर भारत का नूर,
हर टुकड़े में है अब बसता , बस अपनी ‘मैं’ का ही सुरूर,
देश पे मरने वालों ने ही, देश को है कमजोर किया ।
अपनों को अपने घर से ही अब बेघर करते फिरते हैं,
अपनों पे अंगुली उठाने को ही अच्छी बात समझते हैं,
कड़वी बात को कहने को तुमने ही तो मजबूर किया ।
एक से इंसा, एक से रिश्ते, भाषा अलग-अलग अपनी,
सीखो देना तो है मिलता, न हाँको बस अपनी-अपनी,
दिल को थोड़ा बड़ा करो, भगवान ने है भरपूर दिया ।
1 Comments:
ha sir mera watan aisa hi tha .
our
mai ise firse aisa hi banauga
jai hind............salam
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