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कुछ तो मैं कह बैठा हूँ, अभी बहुत कुछ बाकी है,

कागज-कलम हैं मीत मेरे, शब्द ही दिल के साकी हैं !

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"मेरी अभिव्यक्तियों में सूक्ष्म बिंदु से अन्तरिक्ष की अनन्त गहराईयों तक का सार छुपा है इनमें एक बेबस का अनकहा, अनचाहा प्यार छुपा है " -डा0 अनिल चडडा All the content of this blog is Copyright of Dr.Anil Chadah and any copying, reproduction,publishing etc. without the specific permission of Dr.Anil Chadah would be deemed to be violation of Copyright Act.

Monday, October 27, 2008

शीशे सा था वतन मेरा !

शीशे सा था वतन मेरा, किसने है चकनाचूर किया,
स्वार्थ में अंधा हो कर के, भाई भाई से दूर किया ।

निर्मल से दर्पण में था दिखता, चेहरों पर भारत का नूर,
हर टुकड़े में है अब बसता , बस अपनी ‘मैं’ का ही सुरूर,
देश पे मरने वालों ने ही, देश को है कमजोर किया ।


अपनों को अपने घर से ही अब बेघर करते फिरते हैं,
अपनों पे अंगुली उठाने को ही अच्छी बात समझते हैं,
कड़वी बात को कहने को तुमने ही तो मजबूर किया ।

एक से इंसा, एक से रिश्ते, भाषा अलग-अलग अपनी,
सीखो देना तो है मिलता, न हाँको बस अपनी-अपनी,
दिल को थोड़ा बड़ा करो, भगवान ने है भरपूर दिया ।

1 Comments:

Blogger ASHOK BIRLA said...

ha sir mera watan aisa hi tha .
our
mai ise firse aisa hi banauga


jai hind............salam

12:24 PM  

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