छोड़ो ये बदगुमानी !
तुमने तो जो ख़ता की,
सरेआम की,
हमने तो फिर भी लाज की,
तेरे नाम की !
तुम अपनी बात कह कर,
मेरी भी बात सुनते,
न मुझको रोना पड़ता,
न तुम भी ऐसे रोते,
नहीं होती जगहँसाई,
किसी बात की !
हर शख्स का है होता,
अपने ही दिल का तूफाँ,
कोई यूँ ही रोक लेता,
कोई बाँध तोड़ देता,
इस बात को समझ,
है बात काम की !
जीना तो सबको जीना,
और एक दिन है मरना,
फिर संग अपने बोलो,
क्यों अहँ लेके चलना,
चलो साथ-साथ मिलके,
छोड़ो ये बदगुमानी !
1 Comments:
तुमने तो जो ख़ता की,
सरेआम की,
हमने तो फिर भी लाज की,
तेरे नाम की !
bahut badhiyaa!!
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