"गीत" - सबका ही एक अंत है !
जीवन तो प्रपंच-मंच है,
एक खुदा औ’ मौत ही सच है !
अहं बना है सबकी रोटी,
नज़र हुई है सबकी खोटी,
भाग-दौड़ में सभी व्यस्त हैं,
मतलब औ' माया ही सत है,
कौन किसे दोषी ठहराये,
बना झूठ सबका कवच है !
कर्मों की तब याद है आती,
जब-जब हम शमशान हैं जाते,
बाहर निकलते ही पल भर में,
लेकिन हम सब भूल हैं जाते,
खाने को इक-दूजे को तत्पर,
सबका ही पर एक अंत है !
1 Comments:
अहं बना है सबकी रोटी,
नज़र हुई है सबकी खोटी,
भाग-दौड़ में सभी व्यस्त हैं,
मतलब औ' माया ही सत है,
कौन किसे दोषी ठहराये,
बना झूठ सबका कवच है !
बहुत सही कहा है।बहुत बढिया रचना है।बधाई।
Post a Comment
<< Home