"कुछ तो कहो"
कमियाँ मेरी
जगजाहिर करते हो
और
खूबियों से मेरी
मुँह चुराते हो
अपने व्यव्हार से
तुम क्या जतलाते हो ?
क्या मेरी खूबियाँ
या फिर मैं
तुम्हारे लिये
कोई एहमियत नहीं रखते
या फिर
मेरी खूबियों का
जिक्र करते हुए
डर लगता है तुम्हें
कि
तुम नेपथ्य में
न चले जाओ
और मुझे
महत्ता मिल जाये
या फिर
तुम्हारे अंदर का अहँ
सहन नहीं कर पाता
कि
कोई तुमसे आगे बढ़े
और तुम्हें
उसके पदचिन्हों पर
चलना पड़े
कोई बात तो है
जो तुम
खुले व्यवहार से
कतराते हो
और इसीलिये
मन के दरवाजे
बंद रखते हो
कुछ तो कहो
यूँ ही चुप न रहो
कम से कम
तुम्हें समझ पाऊँ मैं
यूँ ही
मन का बोझ
न व्यर्थ बढ़ाऊँ मैं
कुछ तो कहो
चुप न रहो
2 Comments:
बात तो सही कही आपने ...मुझे अच्छी लगी
इंसानी फितरत है
फितराना
तुम तो सब जानते हो
फिर क्यों
विचारों की कुलांचे मारते हो
जो तुम रहे हो सोच
मैं कब का चुका महसूस
बोझ बढ़े तुम्हारे मन पर
तो सुकूं इधर मिलता है
जमाने की यही तो
हसीं चिंता है
इससे भला कोई
जीता है।
Post a Comment
<< Home