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कुछ तो मैं कह बैठा हूँ, अभी बहुत कुछ बाकी है,

कागज-कलम हैं मीत मेरे, शब्द ही दिल के साकी हैं !

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"मेरी अभिव्यक्तियों में सूक्ष्म बिंदु से अन्तरिक्ष की अनन्त गहराईयों तक का सार छुपा है इनमें एक बेबस का अनकहा, अनचाहा प्यार छुपा है " -डा0 अनिल चडडा All the content of this blog is Copyright of Dr.Anil Chadah and any copying, reproduction,publishing etc. without the specific permission of Dr.Anil Chadah would be deemed to be violation of Copyright Act.

Tuesday, April 28, 2009

"कुछ तो कहो"

कमियाँ मेरी

जगजाहिर करते हो

और

खूबियों से मेरी

मुँह चुराते हो

अपने व्यव्हार से

तुम क्या जतलाते हो ?

क्या मेरी खूबियाँ

या फिर मैं

तुम्हारे लिये

कोई एहमियत नहीं रखते

या फिर

मेरी खूबियों का

जिक्र करते हुए

डर लगता है तुम्हें

कि

तुम नेपथ्य में

न चले जाओ

और मुझे

महत्ता मिल जाये

या फिर

तुम्हारे अंदर का अहँ

सहन नहीं कर पाता

कि

कोई तुमसे आगे बढ़े

और तुम्हें

उसके पदचिन्हों पर

चलना पड़े

कोई बात तो है

जो तुम

खुले व्यवहार से

कतराते हो

और इसीलिये

मन के दरवाजे

बंद रखते हो

कुछ तो कहो

यूँ ही चुप न रहो

कम से कम

तुम्हें समझ पाऊँ मैं

यूँ ही

मन का बोझ

न व्यर्थ बढ़ाऊँ मैं

कुछ तो कहो

चुप न रहो


2 Comments:

Blogger अनिल कान्त said...

बात तो सही कही आपने ...मुझे अच्छी लगी

5:28 PM  
Blogger अविनाश वाचस्पति said...

इंसानी फितरत है

फितराना

तुम तो सब जानते हो

फिर क्‍यों

विचारों की कुलांचे मारते हो

जो तुम रहे हो सोच

मैं कब का चुका महसूस

बोझ बढ़े तुम्‍हारे मन पर

तो सुकूं इधर मिलता है

जमाने की यही तो

हसीं चिंता है

इससे भला कोई

जीता है।

5:53 PM  

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