जीवन का राज !
मेरे चेहरे की
गहरा चुकी झुर्रियों में
जीवन का राज छुपा है
इनमें
खाई हुई ठोकरों का
अन्जाम और आगाज छुपा है
ये तो है
तुम पर मुनहस्सर
कितना समझ पाते हो
इनका स्वर
तुम चाहो अगर
समझना इनका स्वर
तो थोड़ा तो
झुकना ही पड़ेगा
मुझे अहमियत देने का
कष्ट तो झेलना ही पड़ेगा
वरना
इन बुढ़ा गई हड्डियों में
इतना दम तो है अभी
कि तुम्हारी जवानी का
तुम्हारी नादानी का
बोझा उठा सके
पर तुम
मरहूम ही रह जाओगे
मेरी झुर्रियों में छुपे राज से
मैं तो सो जाऊँगा
चैन की नींद
पहुँच कर
जीवन के अन्जाम तक
लेकिन तुम
जूझते ही रह जाओगे
जीवन की अनसुलझी पहेली से
जीवन की कड़वी सच्चाईयों के
अन्जाम से
और फिर
मन ही मन
कोसोगे मुझको
(या शायद स्वयँ को भी)
और कहोगे यही बात
कल की जवानी से
और चलता रहेगा
यही सिलसिला
पीढ़ी दर पीढ़ी !
पीढ़ी दर पीढ़ी !!
1 Comments:
बहुत बढिया लिखा ...
Post a Comment
<< Home