"क्यों काँटे है चुभाता !"
मेरा प्यार ग़र तुझपे कोई असर दिखाता,
कभी तो तेरी आँख को नम कर जाता !
दम भर के दोस्ती का, दुश्मनी निभाते रहे,
दोस्त तो दुश्मनी में भी दोस्ती है निभाता !
सुबह की रौशनी हमें कभी न मिली, न सही,
शाम को तो मज़ार पर कोई दीया जलाता !
जीवन के रेगिस्तान में, आँख में कण पड़ेंगे ही,
कोई तो होता जो मेरी आँख सहला जाता !
बाद मरने के ग़र मैय्यत पर फूल चढ़ाने हैं,
तो फिर जीते जी क्यों काँटे है चुभाता !
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