"नेमते-खुदा"
गर्द उड़ती रही, उड़ के जमती रही,
दास्ताँ जिंदगी की, यूँ ही तो चलती रही ।
राह मिलती रही, मिल के मिटती रही,
फ़ेहरिस्त मंज़िलों की, रोज़ ही बनती रही ।
स्वप्न बुनते रहे, रोज हम तो नये,
ठोकरों से लोहे सी, दीवार भी ठहती रही।
डूबता सूरज हमें, निराश कर सकता नहीं,
रात इरादों की नये, फ़साने जो कहती रही ।
आँधियों का शोर, परेशान तो करता रहा,
लौ नई उम्मीद की, पर मेरी जलती रही ।
छाले पाँवों में पड़े, राह के अंगार से,
आग दिल की मेरी, और भी तपती रही ।
हर कदम उठे नया, जोश के हुंकार से,
नेमते-खुदा मदद, आप ही करती रही ।
सोच में न डूब तू, हार कर न बैठ तू,
हर नई उमंग यूँ, बेमौत ही मरती रही ।
2 Comments:
हर कदम उठे नया, जोश के हुंकार से,
नेमते-खुदा मदद, आप ही करती रही ।
सोच में न डूब तू, हार कर न बैठ तू,
हर नई उमंग यूँ, बेमौत ही मरती रही ।
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना....आभार
wah wah..
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