"ऐसा राम चाहिये"
सुना था
जो बोओगे
वो ही तो काटोगे
पर मैंने तो
गमले में
गुलाब था लगाया
यह कैक्टस कैसे उग आया !
मैं समझ नहीं पाया !!
हर कहावत को
चरितार्थ करने के लिये
उसका सही अर्थ
समझने वाला भी तो चाहिये
अर्थ को सही परिभाषा
देने वाला भी तो चाहिये
आजकल तो चहुँ और
अर्थों को
अपने पक्ष में
तोड़ने-मरोड़ने वालों का ही
बोलबाला है
निज स्वार्थ
और
शाश्वत सच्चाई को
हर शख्स ने
बड़ी बेशर्मी से
बेमौत मार डाला है
आजकल तो
सच को झूठ
और झूठ को सच
में बदलने वालों की
एक कतार सी लगी है
एक को गोली मारोगे
तो उसका स्थान
लेने वालों की
भरमार सी लगी है
आज तो
कोई ऐसा राम चाहिये
जो एक ही बाण से
झूठ/फरेब/धोखे जैसे
कई जहरीले पेड़ों के
रावण को
एक ही बाण से
बींध डाले
3 Comments:
आज की बदली दुनिया और समाज का यथार्थ चित्रण, बहुत उम्दा!!
कोई ऐसा राम चाहिये
जो एक ही बाण से
झूठ/फरेब/धोखे जैसे
कई जहरीले पेड़ों के
रावण को
एक ही बाण से
बींध डाले
आपकी ही तरह सबों को इंतजार है ..
बहुत सही शब्दचित्रण किया है।बधाई।
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