क्यों होता है ?
मैं जानता हूँ
मेरे इस दुनिया से
जाने के बाद
मेरी बुराइयों को
मेरी कमियों को
भूल कर
मेरी अच्छाइयों को ही
याद करोगे
तो फिर
मेरे रहते हुए
क्यों नहीं कर पाते हो
इन्हे तुम दरनिकार
क्यों नहीं कह पाते
मेरी अच्छाइयों को
मेरे मुँह पर ही
क्यों नहीं कर पाते
इनके कारण तुम
मुझसे प्यार
बस मेरी कमियों को
सामने रख कर
बना लेते हो
नफरत की एक
झीनी सी दीवार
क्या बता सकते हो ?
क्यों होता है ये बार-बार ??
क्यों छुप जाते हैं
किसी के गुण
अवगुणों के भीतर
क्यों अवगुणों से
हरदम जाते हैं हार
और उभर पाते हैं
किसी को खो कर ही
क्यों होता है ये बार-बार ?
क्यों होता है ये बार-बार ??
2 Comments:
यही यथार्थ है..बढ़िया अभिव्यक्ति!!
बहुत सुंदर भाव ... अच्छी रचना।
Post a Comment
<< Home